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तुलसीदास का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, रचनाएँ, दोहे, भाषा शैली, साहित्य में स्थान, तुलसीदास की काव्यगत विशेषताएँ, tulsidas ka jivan parichay, tulsidas biography in hindi.
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“तुलसी एक ऐसी महत्त्वपूर्ण प्रतिभा थे, जो युगों के बाद एक बार आया करती है तथा ज्ञान-विज्ञान, भाव-विभाव अनेक तत्त्वों का समाहार होती है। इनकी प्रतिभा इतनी विराट् थी कि उसने भारतीय संस्कृति की सारी विराटता को आत्मसात् कर लिया था। ये महान् द्रष्टा थे, परिणामतः स्रष्टा थे। ये विश्व-कवि थे और हिन्दी साहित्य के आकाश थे, सब कुछ इनके घेरे में था।” गोस्वामी तुलसीदास जी के जीवन-वृत के बारे में अन्तःसाक्ष्य एवं बहि:साक्ष्य के आधार पर विद्वानों ने विविध मत प्रस्तुत किए हैं, तो चलिए आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको तुलसीदास जी के बारे में संपूर्ण जानकारी देंगे, ताकि आप परीक्षाओं में ज्यादा अंक प्राप्त कर सकें।
तो दोस्तों, आज के इस लेख में हमने “तुलसीदास का जीवन परिचय” (Tulsidas history in Hindi) के बारे में बताया है। इसमें हमने तुलसीदास का जीवन परिचय भाव पक्ष कला पक्ष अथवा साहित्यिक परिचय, रचनाएं एवं कृतियां, भाषा शैली, काव्यगत विशेषताएं एवं हिंदी साहित्य में स्थान और गोस्वामी तुलसीदास जी का संबंध किस काव्यधारा से है को भी विस्तार पूर्वक सरल भाषा में समझाया है।
इसके अलावा, इसमें हमने तुलसीदास जी के जीवन से जुड़े उन सभी प्रश्नों के उत्तर दिए हैं जो अक्सर परीक्षाओं में पूछे जाते हैं। यदि आप भी तुलसी जी के जीवन से जुड़े उन सभी प्रश्नों के उत्तर के बारे में जानना चाहते हैं तो आप इस आर्टिकल को अंत तक अवश्य पढ़ें।
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तुलसीदास का संक्षिप्त परिचय
विद्यार्थी ध्यान दें कि इसमें हमने गोस्वामी तुलसी जी की जीवनी के बारे में संक्षेप में एक सारणी के माध्यम से समझाया है।
तुलसीदास की जीवनी –
पूरा नाम | गोस्वामी तुलसीदास |
उपाधि | गोस्वामी, अभिनववाल्मीकि, भक्तशिरोमणि: |
बचपन का नाम | रामबोला |
उपनाम | गोस्वामी, तुलाराम, तुलसी |
जन्म तिथि | संवत् 1589 वि० (सन् 1532 ईस्वी) |
जन्म स्थान | राजापुर ग्राम, जिला बांदा, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु तिथि | संवत् 1680 वि० (सन् 1623 ईस्वी) |
मृत्यु स्थान | काशी के असीघाट (वाराणसी), उत्तर प्रदेश |
पिता का नाम | श्री आत्माराम दुबे |
माता का नाम | श्रीमती हुलसी |
पत्नी का नाम | श्रीमती रत्नावली |
गुरु का नाम | बाबा नरहरिदास |
शिक्षा | संत नरहरिदास ने इन्हें भक्ति की शिक्षा, वेद-वेदांग, इतिहास, पुराण, दर्शन आदि की शिक्षा प्रदान की। |
पैशा | कवि, रामभक्त, संत, समाज सुधारक |
काल/अवधि | भक्तिकाल |
भक्ति शाखा | रामभक्ति शाखा |
भक्ति आंदोलन | सगुण भक्तिधारा |
भाषा | अवधी और ब्रजभाषा |
शैली | दोहा, चौपाई, कवित्त, सवैया, पद आदि काव्य-शैली |
प्रमुख काव्य-ग्रंथ | रामचरितमानस |
प्रमुख रचनाएं | विनय-पत्रिका, गीतावली, कवितावली, जानकी-मंगल, वैराग्य-संदीपनी, हनुमान-वाहक, कृष्ण-गीतावली, बरवै-रामायण आदि। |
साहित्य में स्थान | रामचरितमानस महाकाव्य की रचना करके तुलसी विश्व-साहित्य की महान् विभूति बन गए हैं। |
प्रस्तावना— भारतीय संस्कृति के उन्नायक महाकवि तुलसीदास भक्तिकाल की सगुण काव्यधारा की रामभक्ति शाखा के प्रमुख कवि हैं। इन्होंने राम के पावन चरित्र का हिन्दी कविता के माध्यम से गुणगान किया है। ये भारतीय संस्कृति के पुजारी, संत और महान् समन्वयकारी लोकनायक के रूप में प्रसिद्ध हैं।
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तुलसीदास का जीवन परिचय (tulsidas ka jivan parichay)
जीवन-परिचय— लोकनायक गोस्वामी तुलसीदास जी के जीवन-चरित्र से सम्बन्धित प्रामाणिक सामग्री अभी तक नहीं प्राप्त हो सकी है। डॉ० नगेन्द्र द्वारा लिखित ‘हिन्दी-साहित्य का इतिहास’ में इनके सन्दर्भ में जो प्रमाण प्रस्तुत किए गए हैं, वे इस प्रकार हैं- बेनीमाधव प्रणीत ‘मूल गोसाईंचरित’ तथा महात्मा रघुबरदास रचित ‘तुलसीचरित’ में तुलसीदास जी का जन्म संवत् 1554 वि० (सन् 1497 ई०) दिया गया है। बेनीमाधवदास की रचना में गोस्वामीजी की जन्म-तिथि श्रावण शुक्ला सप्तमी का भी उल्लेख है। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित दोहा प्रसिद्ध है—
पंद्रह सौ चौवन बिसै, कालिंदी के तीर।
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी धर्यौ सरीर॥
‘शिवसिंह सरोज’ में इनका जन्म संवत् 1583 वि० (सन् 1526 ई०) बताया गया है। पं० रामगुलाम द्विवेदी ने इनका जन्म संवत् 1589 वि० (सन् 1532 ई०) स्वीकार किया है। सर जॉर्ज ग्रियर्सन द्वारा भी इसी जन्म संवत् को मान्यता दी गई है। निष्कर्ष रूप में जनश्रुतियों एवं सर्वमान्य तथ्यों के अनुसार इनका जन्म संवत् 1589 वि० (सन् 1532 ई०) माना जाता है।
इनके जन्म स्थान के सम्बन्ध में भी पर्याप्त मतभेद हैं। ‘तुलसीचरित’ में इनका जन्मस्थान राजापुर बताया गया है, जो उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले का एक गाँव है। कुछ विद्वान् तुलसीदास द्वारा रचित पंक्ति “मैं पुनि निज गुरु सन सुनि, कथा सो सूकरखेत” के आधार पर इनका जन्मस्थल एटा जिले के ‘सोरो’ नामक स्थान को मानते हैं, जबकि कुछ विद्वानों का मत है कि ‘सूकरखेत’ को ‘भ्रमवश ‘सोरो’ मान लिया गया है। वस्तुतः यह स्थान आजमगढ़ जिले में स्थित है। इन तीनों मतों में इनके जन्मस्थान को ‘राजापुर’ माननेवाला मत ही सर्वाधिक उपयुक्त समझा जाता है। जनश्रुतियों के आधार पर यह माना जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास के पिता का नाम आत्माराम दुबे एवं माता का नाम हुलसी था। इनका बचपन का नाम ‘तुलाराम’ था।
लाज न लागत आपको, दौरे आयहु साथ।
धिक् धिक् ऐसे प्रेम को, कहा कहौं मैं नाथ॥
अस्थि-चर्ममय देह मम, तामे ऐसी प्रीति।
ऐसी जो श्रीराम महँ, होत न तौ भवभीति॥
पत्नी की इस फटकार ने तुलसीदास जी को सांसारिक मोह-माया और भोगों से विरक्त कर दिया। इनके हृदय में राम-भक्ति जाग्रत हो उठी। घर को त्यागकर कुछ दिन ये काशी में रहे, इसके बाद अयोध्या चले गए। बहुत दिनों तक ये चित्रकूट में भी रहे। यहाँ पर इनकी भेंट अनेक सन्तों से हुई। संवत् 1631 (सन् 1574 ई०) में अयोध्या जाकर इन्होंने ‘श्रीरामचरितमानस’ की रचना की। यह रचना दो वर्ष सात मास में पूर्ण हुई। इसके बाद इनका अधिकांश समय काशी में ही व्यतीत हुआ तथा संवत् 1680 (सन् 1623 ई०) में श्रावण शुक्ल पक्ष सप्तमी को काशी के असीघाट पर तुलसीदास जी राम-राम कहते हुए इनकी मृत्यु हो गई। इनकी मृत्यु के सम्बन्ध में यह दोहा प्रसिद्ध है—
संवत् सोलह सौ असी, असी गंग के तीर।
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी तज्यो शरीर ॥
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तुलसीदास का साहित्यिक परिचय
साहित्यिक सेवाएँ— तुलसीदास जिस काल में उत्पन्न हुए, उस समय हिन्दू-जाति धार्मिक, सामाजिक व राजनीतिक अधोगति को पहुँच चुकी थी। हिन्दुओं का धर्म और आत्म-सम्मान यवनों के अत्याचारों से कुचला जा रहा था। सभी ओर निराशा का वातावरण व्याप्त था। ऐसे समय में अवतरित होकर गोस्वामी जी ने जनता के सामने भगवान राम का लोकरक्षक रूप प्रस्तुत किया, जिन्होंने यवन शासकों से कहीं अधिक शक्तिशाली रावण को केवल वानर-भालुओं के सहारे ही कुलसहित नष्ट कर दिया था। गोस्वामी जी का अकेला यही कार्य इतना महान् था कि इसके बल पर वे सदा भारतीय जनता के हृदय सम्राट् बने रहेंगे।
काव्य के उद्देश्य के सम्बन्ध में तुलसी का दृष्टिकोण सर्वथा सामाजिक था। इनके मत में वही कीर्ति, कविता और सम्पत्ति उत्तम है जो गंगा के समान सबका हित करने वाली हो— “कीरति भनिति भूति भलि सोई । सुरसरि सम सबकर हित होई ॥” जनमानस के समक्ष सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन का उच्चतम आदर्श रखना ही इनका काव्यादर्श था। जीवन के मार्मिक स्थलों की इनको अद्भुत पहचान थी। तुलसीदास ने राम के शक्ति, शील, सौन्दर्य समन्वित रूप की अवतारणा की है। इनका सम्पूर्ण काव्य समन्वय-भाव की विराट चेष्टा है। ज्ञान की अपेक्षा भक्ति का राजपथ ही इन्हें अधिक रुचिकर लगा है।
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तुलसीदास की प्रमुख रचनाएँ
गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा लिखित 37 ग्रन्थ माने जाते हैं, किन्तु प्रामाणिक ग्रन्थ 12 ही माने जाते हैं, जिनमें पांच प्रमुख हैं— श्रीरामचरितमानस, विनयपत्रिका, कवितावली, गीतावली, दोहावली। अन्य ग्रंथ है— बरवै रामायण, रामलला नहछू, कृष्ण गीतावली, वैराग्य संदीपनी, जानकी-मंगल, पार्वती-मंगल, रामाज्ञा प्रश्न और हनुमान-वाहक आदि।
रचनाएं एवं कृतियाँ- कविकुलगुरु तुलसीदास जी की 12 रचनाओं का सम्पूर्ण उल्लेख मिलता है—
(1) रामलला नहछू– गोस्वामीजी ने लोकगीत की ‘सोहर’ शैली में इस नहछू-ग्रन्थ की रचना की थी। यह इनकी प्रारम्भिक रचना है।
(2) वैराग्य-संदीपनी– इसके तीन भाग हैं। पहले भाग में 6 छन्दों में ‘मंगलाचरण’ है। दूसरा ‘सन्त-महिमा-वर्णन’ और तीसरा भाग ‘शान्ति-भाव-वर्णन’ का है।
(3) रामाज्ञा-प्रश्न – इसमें शुभ-अशुभ शकुनों का वर्णन है। यह ग्रन्थ सात सर्गों में है। इसमें रामकथा का वर्णन किया गया है।
(4) जानकी-मंगल – इसमें कवि ने श्रीराम और जानकी के मंगलमय विवाह उत्सव का मधुर शब्दों में वर्णन किया है।
(5) श्रीरामचरितमानस – इस विश्वप्रसिद्ध ग्रन्थ में कवि ने मर्यादा-पुरुषोत्तम श्रीराम के चरित्र का व्यापक वर्णन किया है।
(6) पार्वती-मंगल – यह मंगल-काव्य है। गेय पद होने के कारण इसमें संगीतात्मकता का गुण विद्यमान है। इस रचना का उद्देश्य ‘शिव-पार्वती-विवाह’ का वर्णन करना है।
(7) गीतावली – इसमें संकलित 230 पदों में राम के चरित्र का वर्णन है। कथानक के आधार पर इन पदों को सात काण्डों में विभाजित किया गया है।
(8) विनयपत्रिका – ‘विनयपत्रिका’ का विषय भगवान् राम को कलियुग के विरुद्ध प्रार्थना-पत्र देना है। इसमें तुलसी भक्त और दार्शनिक कवि के रूप में दिखाई दिए हैं।
(9) श्रीकृष्णगीतावली – इसके अन्तर्गत केवल 61 पदों में कवि ने पूरी श्रीकृष्ण-कथा मनोहारी ढंग से प्रस्तुत की है।
(10) बरवै-रामायण – यह गोस्वामीजी की स्फुट रचना है। इसमें श्रीराम-कथा संक्षेप में वर्णित है।
(11) दोहावली – इस संग्रह-ग्रन्थ में कवि की सूक्ति-शैली के दर्शन होते हैं।
(12) कवितावली – इस कृति में कवित्त और सवैया शैली में रामकथा का वर्णन किया गया है।
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तुलसीदास जी की भाषा शैली
भाषा-शैली— ब्रज एवं अवधी दोनों ही भाषाओं पर तुलसी का समान अधिकार था। कवितावली, गीतावली, विनयपत्रिका आदि रचनाएं ब्रजभाषा में और रामचरितमानस अवधी भाषा में है। अवधी भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों के प्रयोग के कारण इनकी रचनाओं में साहित्यिकता उच्चकोटि की है। यत्र-तत्र अरबी, फारसी, उर्दू तथा बुन्देलखण्डी भाषाओं के शब्द भी देखने को मिलते हैं। अपने समय में प्रचलित दोहा, चौपाई, कवित्त, सवैया, पद आदि काव्य-शैलियों में तुलसी ने पूर्ण सफलता के साथ काव्य रचना की है। दोहावली में दोहा पद्धति, रामचरितमानस में दोहा-चौपाई पद्धति, विनयपत्रिका में गीति पद्धति, कवितावली में कवित्त- सवैया पद्धति को इन्होंने अपनाया है। इन सभी शैलियों में इन्हें अद्भुत सफलता मिली है जो इनकी सर्वतोमुखी प्रतिभा तथा काव्यशास्त्र में इनकी गहन अंतर्दृष्टि की परिचायक है। इनके काव्य में भाव-पक्ष के साथ कला-पक्ष की भी पूर्णता है जिसको नीचे समझाया गया है।
तुलसीदास की काव्यगत विशेषताएँ
काव्यगत विशेषताएँ— तुलसी की कविता का भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों ही उच्चकोटि के हैं। इसीलिए तुलसी हिन्दी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। इनकी काव्यगत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
भाव पक्ष— तुलसीदास जी की भक्ति दास्य-भाव की है। वे राम के अनन्य भक्त हैं। राम स्वामी हैं और तुलसी सेवक हैं। तुलसी का काव्य हिन्दू धर्म, संस्कृति और दर्शन का पवित्र संगम है। इनकी कविता में समन्वय की भावना सर्वत्र विद्यमान है। इन्होंने शैव और वैष्णव के भेद को समाप्त करके धार्मिक समन्वय का प्रयास किया। उनके राम कहते हैं-
शिव द्रोही मम दास कहावा।
सो नर मोहि सपनेहुं नहिं भावा॥
सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन का उच्चतम आदर्श ‘जन-मानस के सम्मुख रखना ही तुलसी के काव्य का आदर्श था।
कला पक्ष— तुलसी ने अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं का समान रूप में प्रयोग किया है। इन्होंने अपने समय तक प्रचलित दोहा, चौपाई, कवित्त, सवैया, पद आदि काव्य शैलियों में पूर्ण सफलता के साथ ‘काव्य रचना’ की है। इसकी रचना में प्रायः सभी प्रकार के अलंकारों एवं रसों का बड़ा सुन्दर और स्वाभाविक समावेश हुआ है। उपमा, रूपक और उत्प्रेक्षा तुलसी के प्रिय अलंकार हैं। उत्पेक्षा, अनुप्रास और रूपक अलंकार का एक साथ प्रयोग देखिए-
अनुराग-तड़ाग में भानु उदै।
विगसी मनौ मंजुल कंज-कली॥
तुलसीदास जी का साहित्य में स्थान
साहित्य में स्थान— गोस्वामी तुलसीदास हिन्दी-साहित्य के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। इनके द्वारा हिन्दी कविता की सर्वतोमुखी उन्नति हुई। इन्होंने अपने काल के समाज की विसंगतियों पर प्रकाश डालते हुए उनके निराकरण के उपाय सुझाये। साथ ही अनेक मतों और विचारधाराओं में समन्वय स्थापित करके समाज में पुनर्जागरण का मन्त्र फूँका। इसीलिए इन्हें समाज का पथ-प्रदर्शक कवि कहा जाता है।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस जैसे महाकाव्य की रचना करके तुलसी हिन्दी-साहित्य ही नहीं, अपितु विश्व-साहित्य की महान् विभूति बन गये हैं। इनकी कविता में काव्य के सभी गुणों का सुन्दर सम्मिश्रण है। अयोध्यासिंह उपाध्याय जी ने इनके विषय में ठीक ही कहा है—
“कविता करके तुलसी न लसे।
कविता लसी पा तुलसी की कला॥”
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तुलसीदास की राम भक्ति
गोस्वामी तुलसीदास राम के भक्त थे। इनकी भक्ति दास्य-भाव की थी। सम्वत् 1631 में इन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘रामचरितमानस’ की रचना आरम्भ की। इनके इस ग्रन्थ में विस्तार के साथ राम के चरित्र का वर्णन हुआ है। तुलसी के राम में शक्ति, शील और सौन्दर्य तीनों गुणों का अपूर्व सामंजस्य है। मानव-जीवन के सभी उच्चादर्शों का समावेश करके इन्होंने राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बना दिया है। अवधी भाषा में रचित रामचरितमानस बड़ा ही लोकप्रिय ग्रन्थ है। विश्व-साहित्य के प्रमुख ग्रन्थों में इसकी गणना की जाती है। रामचरितमानस के अतिरिक्त इन्होंने जानकी-मंगल, पार्वती-मंगल, रामलला-नहछू, रामाज्ञा-प्रश्न, बरवै-रामायण, वैराग्य-संदीपनी, कृष्ण-गीतावली, दोहावली, कवितावली, गीतावली तथा विनय-पत्रिका आदि ग्रन्थों की रचना की।
तुलसीदास जी की रचनाओं में भारतीय सभ्यता और संस्कृति का पूर्ण चित्रण देखने को मिलता है। रामचरितमानस आज भी देश की जनता को आदर्श जीवन के निर्माण की प्रेरणा प्रदान करता है।
तुलसी के राम का स्वरूप स्पष्ट कीजिए
तुलसीदास राम के अनन्य भक्त हैं। इनकी भक्ति सेवक-सेव्य भाव की है। रामविमुख प्रिय इनके लिए त्याज्य है-
“जाके प्रिय न राम वैदेही।
तजिए ताहि कोटि वैरी सम जद्यपि परम सनेही॥”
तुलसी के काव्य में समन्वय की भावना उसकी प्रमुख विशेषता है। इन्होंने भक्ति एवं ज्ञान, निर्गुण एवं सगुण, शैव और शाक्त में समन्वय स्थापित किया। ये सच्चे समन्वयवादी कवि थे।
गोस्वामी तुलसी जी का काव्य जनहिताय, परहिताय एवं लोकमंगल की भावना से सम्पन्न है। इनके अनुसार शक्ति, शील एवं सौन्दर्य के प्रेतिरूप राम लोककल्याण के लिए ही अवतरित हुए हैं-
“परहित सरिस धर्म नहिं भाई।
परपीड़ा सम नहिं अधमाई॥”
तुलसीदास की काव्य-रचनाएँ मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान ‘राम’ के लोकपावन चरित्र से परिपूर्ण हैं।
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FAQs.
गोस्वामी तुलसीदास जी के जीवन से जुड़े प्रश्न उत्तर
1. तुलसीदास जी का जीवन परिचय कैसे लिखा जाता है?
जीवन-परिचय— गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म सन् 1532 ई० (भाद्रपद, शुक्ल पक्ष, एकादशी, सं० 1589 वि०) में बाँदा जिले के राजापुर ग्राम में हुआ था। कुछ विद्वान् इनका जन्म एटा जिले के ‘सोरो’ ग्राम में मानते हैं। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने राजापुर का ही समर्थन किया है। तुलसी सरयूपारीण ब्राह्मण थे। इनके पिता आत्माराम दुबे और माता हुलसी ने अभुक्त मूल नक्षत्र में उत्पन्न होने के कारण इन्हें त्याग दिया था। इनका बचपन अनेकानेक आपदाओं के बीच व्यतीत हुआ। सौभाग्य से इनको बाबा नरहरिदास जैसे गुरु का वरदहस्त प्राप्त हो गया। इन्हीं की कृपा से इनको शास्त्रों के अध्ययन-अनुशीलन का अवसर मिला। स्वामी जी के साथ ही ये काशी आये थे, जहाँ परम विद्वान् महात्मा शेष सनातन जी ने इन्हें वेद-वेदांग, दर्शन, इतिहास, पुराण आदि में निष्णात कर दिया।
तुलसी का विवाह दीनबन्धु पाठक की सुन्दर और विदुषी कन्या रत्नावली से हुआ था। इन्हें अपनी रूपवती पत्नी से अत्यधिक प्रेम था। एक बार पत्नी द्वारा बिना कहे मायके चले जाने पर अर्द्धरात्रि में आँधी-तूफान का सामना करते हुए ये अपनी ससुराल जा पहुँचे। इस पर पत्नी ने इनकी भर्त्सना की—
अस्थि चर्म मय देह मम, तामें ऐसी प्रीति ।
तैसी जो श्रीराम महँ, होति न तौ भवभीति ॥
अपनी पत्नी की फटकार से तुलसी को वैराग्य हो गया। अनेक तीर्थों का भ्रमण करते हुए ये राम के पवित्र चरित्र का गायन करने लगे। अपनी अधिकांश रचनाएँ इन्होंने चित्रकूट, काशी और अयोध्या में ही लिखी हैं। काशी के असी घाट पर सन् 1623 ई० (श्रावण, शुक्ल पक्ष, सप्तमी, सं०1680 वि०) में इनकी पार्थिव लीला का संवरण हुआ। इनकी मृत्यु के सम्बन्ध में निम्नलिखित दोहा प्रसिद्ध है—
संवत् सोलह सौ असी, असी गंग के तीर ।
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी तज्यो शरीर ॥
2.
तुलसीदास की 12 रचनाएं कौन कौन सी है?
तुलसीदास जी द्वारा रचित 12 ग्रन्थ प्रामाणिक माने जाते हैं, जिनमें श्रीरामचरितमानस प्रमुख है। ये निम्नलिखित हैं—
(1) श्रीरामचरितमानस, (2) विनयपत्रिका, (3) कवितावली, (4) गीतावली, (5) कृष्ण गीतावली, (6) बरवै रामायण, (7) रामलला नहछू, (8) वैराग्य संदीपनी, (9) जानकी-मंगल , (10) पार्वती-मंगल, (11) दोहावली, (12) रामाज्ञा प्रश्न |
3.
तुलसीदास का नाम रामबोला क्यों पड़ा?
जब तुलसीदास जी का जन्म हुआ तब ये पांच वर्ष के बालक मालूम होते थे, दांत सब मौजूद थे और जन्मते ही इनके मुख से ‘राम’ शब्द निकला। इसलिए इन्हें ‘रामबोला’ कहें जाने लगा था।
4. तुलसीदास कितने पढ़े लिखे थे?
बाबा नरहरिदास ने इन्हें ज्ञान एवं भक्ति की शिक्षा प्रदान की। इन्हीं की कृपा से तुलसीदास जी ने वेद-वेदांग, दर्शन, इतिहास, पुराण आदि में निष्णात हो गए थे।
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तुलसी जी का जन्म और मृत्यु कब हुआ था?
गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म सन् 1532 ईस्वी (संवत् 1589 वि०) को उत्तर प्रदेश के बाॅंदा जिले के राजापुर नामक ग्राम में हुआ था, तथा तुलसीदास जी की मृत्यु सन् 1623 ईस्वी (संवत् 1680 वि०) को काशी के असीघाट (वाराणसी) उत्तर प्रदेश में हुई थी।